रामराज्य का आदर्श
रामराज्य हिन्दुओं का आदर्श समाज अथवा राज्य है जहाँ सभी "नागरिक" सुखी और स्वस्थ रहे। व्यक्तियों की आयु 100 वर्ष की हो। यहाँ "नागरिक" जानबूझ कर इसलिए लिखा गया है क्योंकि इस राज्य में जंगली लोगों (अथवा असुर या राक्षसों) का प्रवेश वर्जित है।
वर्ण-व्यवस्था
इस रामराज्य की स्थापना के लिए वर्ण-व्यवस्था का प्रावधान किया है। वर्ण व्यवस्था के अनुसार सभी नागरिकों को उनके स्वभाव अथवा जन्मजात गुणों के आधार पर चार वर्णों में बाँटा गया है। चारों वर्ण और उनके अधिकार निम्न प्रकार है --
स्तर | वर्ण | विषय | अधिकार | कर्तव्य |
1. | ब्राह्मण | धर्म | शिक्षा और धर्म | समाज का मार्गदर्शन |
2. | क्षत्रिय | बल | शासन और सेना | राष्ट्र की सुरक्षा |
3. | वैश्य | धन | व्यापार | धर्म और राष्ट्र के लिए धन व्यवस्था |
4. | शूद्र | श्रम | सेवा, खेती, शिल्प इत्यादि | उपरोक्त तीनों वर्णों की सेवा |
वर्णों पर आधारित अधिकार और कर्तव्य एक प्रकार की आरक्षण व्यवस्था थी जिसमें जन्म के आधार पर लोगों का व्यवसाय निर्धारित था। अब पुरोधित का बेटा पुरोहित, आचार्य का बेटा, राजा का बेटा राजा, सेनापति का बेटा, मंत्री का बेटा मंत्री, नौकर का बेटा नौकर, कोतवाल का बेटा कोतवाल, जमींदार का बेटा जमींदार, व्यापारी का बेटा व्यापारी, सूदखोर का बेटा सूदखोर, किसान का बेटा किसान, हलवाई का बेटा हलवाई, नाई का बेटा नाई, धोबी का बेटी धोबी, मजदूर का बेटा मजदूर ही बन सकता था।
शिक्षा व्यवस्था
रामराज्य में शिक्षा के लिए गुरुकुलों की व्यवस्था थी। केवल प्रथम तीनों वर्ण के बच्चे को शिक्षा का अधिकार था।
क्रम | वर्ण | शिक्षा का स्तर | अधिकार |
1. | ब्राह्मण | उच्च | वेदों की रचना और अध्यापन |
2. | क्षत्रिय | मध्यम | धर्म, शासन और शस्त्र प्रशिक्षण |
3. | वैश्य | निम्न | धर्म और व्यापार की शिक्षा |
4. | शूद्र | - | पारंपारिक व्यवसाय |
इस विषय में किसी को किसी प्रकार का भ्रम नहीं होना चाहिए कि शिक्षा के स्तर से ही व्यक्ति के सामाजिक स्तर निर्धारण होता है। ब्राह्मणों ने धर्म और शिक्षा को अपने अधिकार पर रखकर, तथा अन्य वर्णों की शिक्षा को नियंत्रित करके समाज में एक अप्राकृतिक गुणों के विकास को बढ़ावा दिया।
शूद्रों को शिक्षा, प्रशासन और धन पर कोई अधिकार नहीं था। परन्तु शिक्षा के अभाव से वे अपने पारंपरिक व्यसायों के अलावा अन्य किसी भी प्रकार के कार्य को करने में असमर्थ हो गए। आधुनिक काल में अंग्रेजी शासन के अंतर्गत सर्वप्रथम शूद्रों को शिक्षा प्राप्त करने का अवसर प्राप्त हुआ।
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