मुल्ला नसरुद्दीन होजा एक मनमौजी, बुद्धिमान और हँस-मुख आदमी था। वह तेरहवीं शताब्दी में तुर्की में पैदा हुआ था।
बीरबल और तेनालीराम की तरह नसरुद्दीन की सूझ-बूझ भी सैंकड़ों किस्से मशहूर है। बीरबल और तेनालीराम और नसरुद्दीन के किस्सों में विशेष अन्तर यह है कि कई बार अपना पक्ष सिद्ध करने के लिए वह स्वयं मूर्ख और मजाक का पात्र बन जाता है। इस प्रकार जबकि बीरबल और तेनालीराम राजा है, नसरुद्दीन एक आम आदमी है।
ओशो रजनीश ने अपने अनेक उपदेशों में नसरुद्दीन को अपनी कहानियों का पात्र बनाया है। एक उदाहरण प्रस्तुत है।
एक बार नसरुद्दीन की अंगूठी खो गई। वह बाहर जाकर उसे ढूँढने लगा।
बीवी ने पूछा, मुल्ला तुम्हारी अंगूठी तो अन्दर खोई है, तुम बाहर क्यों ढूँढ़ रहे है?
मुल्ला ने अपनी दाढ़ी खुललाई और बोला, अंदर अंधेरा है और मुझे दिखता भी कम है। यहाँ बाहर उजाला है, इसलिए बाहर ढूँढ़ रहा हूँ।
इस कहानी को पढ़कर हमें नसरुद्दीन की बेवकूफी पर हँसी आती है। लेकिन ओशो कहानी के अंत में ओशो अपना उपदेश जोड़ देते है और कहते है, हम नसरुद्दीन पर हँस रहे है, लेकिन अपने जीवन में यही करते है। भगवान मनुष्य के हृदय में वास करते है, और मनुष्य उसकी तलाश में मारा-मारा फिरता है। जैसे, कस्तूरी कुंडल बसे मृग ढूँढ़े बन माहि।
आज इतना ही।
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